पहेलियों के शौकीन रवि

एक बार की बात है, एक बड़े शहर में रवि नाम का एक धनी व्यापारी रहता था। रवि को पहेलियों और पहेलियों का बहुत शौक था, और वह अक्सर अपने दोस्तों और परिवार को पेचीदा सवालों से चुनौती देता था।

एक दिन एक गरीब यात्री रवि के घर आया और उसने कुछ भोजन और आश्रय मांगा। रवि ने यात्री का स्वागत किया और उससे पूछा कि क्या वह पहेलियाँ हल करने में अच्छा है। यात्री ने कहा कि वह है, और रवि ने उसे एक पहेली के साथ चुनौती देने का फैसला किया।

रवि ने यात्री को एक कागज का टुकड़ा दिया, जिस पर निम्नलिखित पहेली लिखी हुई थी:

“मैं एक पंख के रूप में हल्का हूँ, फिर भी सबसे मजबूत आदमी मुझे एक मिनट से अधिक नहीं पकड़ सकता। मैं क्या हूँ?”

यात्री ने कुछ मिनटों के लिए सोचा और अंत में हार मान ली, पहेली को हल करने में असमर्थ रहा। रवि मुस्कुराया और यात्री को उत्तर दिया: “साँस।”

यात्री प्रभावित हुआ और उसने रवि से पूछा कि क्या उसके पास कोई और पहेली है। रवि ने उसे एक नई पहेली के साथ कागज का एक और टुकड़ा दिया:

“वह क्या है जो हमेशा आपके सामने होता है लेकिन देखा नहीं जा सकता?”

यात्री ने कुछ मिनट सोचा और अंत में फिर हार मान ली। रवि मुस्कुराया और यात्री को उत्तर बताया: “भविष्य।”

यात्री रवि की बुद्धिमत्ता पर चकित था और उसने उससे पूछा कि वह इतना चतुर कैसे हो गया। रवि ने जवाब दिया, “मैं हर दिन किताबें पढ़ता हूं और पहेलियों का अभ्यास करता हूं। कड़ी मेहनत और समर्पण से कोई भी बुद्धिमान बन सकता है।”

कहानी का नैतिक: बुद्धि केवल प्राकृतिक क्षमता के बारे में नहीं है; इसे कड़ी मेहनत और अभ्यास के माध्यम से विकसित किया जा सकता है।

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